tag:blogger.com,1999:blog-4800683082541874884.post1142494598443461911..comments2013-09-02T01:14:20.760-07:00Comments on जय कुमार 'रूसवा': मेरी ग्यारह कवितानया समाजhttp://www.blogger.com/profile/06688353327748761500noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4800683082541874884.post-28158851035616972402010-11-01T01:34:47.652-07:002010-11-01T01:34:47.652-07:00हुज़ूर...नमस्कारम्!
आज मैंने आपको खोज ही लिया। आ...हुज़ूर...नमस्कारम्! <br />आज मैंने आपको खोज ही लिया। आद. श्री कौशिक जी का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरा संदेश आप तक पहुँचाया।<br /><br />वीणा पर यूँ उदासी का छाना और साध के व्याकरण का उल्टा हो जाना आपके कवि को आहत करता है, स्वाभाविक ही तो है। लेकिन ऐसे में भी कवि का निराश न होना बहुत आशावादी संकेत है-<br /><br />"साध का उल्टा हुआ है व्याकरण भी<br />पर धड़कती है अभी आशा जरा-सी<br />आज वीणा पर जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.com