मंगलवार, 17 जून 2008

टुकड़े-टुकड़े सोच



1.एक शब्द...
बूढ़े बाप को
केवल
एक शब्द ने
मारा
जब दो बेटों ने
सामने
खड़े होकर कहा
"बंटवारा" ।

2.अंगूठा...
जिसने
शहर भर में,
साक्षरता अभियान के
पोस्ट लगाए
उसने
मज्दूरी के पैसे
अंगूठा
लगा कर उठाए।


3.गलतफहमी...
पार्टियों की
खींचा-तान
आतंक का साम्राज्य
जनता
सहमी-सहमी है
यह आजादी है
या
आजादी की
गलतफहमी है?


4.दुकान...
शहीदों ने
देश बचाने
एवं
आयुध बनाने के लिये
अपनी
अस्थियां दी
और
आज के नेताओं ने
उन अस्थियों की
दुकान खोल ली।


5.भारत महान
भूखा,
अधनंगा,
बेहाल बच्चा
गौर से
देख रहा है
श्रीमान् !
दिवार पर
लिक्खा हुआ
"मेरा भारत महान"


6.विशालता...
समुद्र के किनारे
प्यासा!
प्यासा
जब तक है
तब तक
समुद्र की
विशालता
निरर्थक है।


7. अरमान...
जिनके कांधों पर
जनता के
अरमान टिकते हैं
वे विधयक
यहाँ
थोक में
बिकते हैं।



8. लाल झण्डा
भारतीय
कारखानों का
उत्पादन
इसलिए
ठण्डा है, कि
अधिकतर
मजदूरों के
हथों में
लाला झण्डा है।


9.उदाहरण
सर्वतोन्मुखी
आधुनिकता का
उदाहरहण
हमारे सामने
तब आया
जब नगर की
सबसे बड़ी
सांस्कृतिक संस्था ने
असांस्कृतिक
कार्यक्रम करवाया।


10. दर्पण
दर्पण
यदि आज के
आदमी का
उसका असली चेहरा
दिखायेगा
तो आदमी
स्वयं को
पहचान भी
नहीं पायेगा।


11.तलाश
जो
कायम रख सके
जनता का
विश्वास
करती है
जनता
उस नेता की
निरर्थक तलाश।


12.भावार्थ
पहले
वे कवि थे
फिर
नेता हो गये
अर्थ मिला
तो भावार्थ
खो गये।


13.चित्र
हमने
आस्तीनों में
सांप पाले
बांबियों में
हाथ डाले
और अब वे
डस्ने वाले
हम डसाने वाले
प्यारे मित्र !
यही है
सत्ता और जनता का
सजीव चित्र।


14.दगा
जो जितना ज्यादा
दोस्ती का
दम भरता है
वह
उतना ही बड़ा
दोस्तसे दगा
करता है।


15.देश
बिना दूध के
आंचल मां का
जल रहा है
और
वह कहते हैं
'अपकी गोद में
देश
पलरहा है।'


16.हुनर
हर सुविधा
स्वयं चल कर
आपके
घर आ जाए
आपको
अगर
कसीदे गाने का
हुनर
आ जाए।


17. कर्ज
कर्ज लेकर खाइए
मौज उड़ाइए
वापस
मत लौटाइए
देनेवाला रोयेगा
ढीढ बनिये
आपका
कुछ भी
नहीं होगा।


18.ड्रामा
भारत के
सुसंस्कृत इतिहास में
जोड़ा गया
भ्रष्टाचार का
ऎसा ड्रामा
जिसमें
नकोई फुलिस्टॉप है
न कामा ।


19.बत्तीसी
लोहा,
कंकरीट,
सीमेण्ट,
ईंट
मुंह में डाली
फिर भी
ज्यों की त्यों
बनी रही
ठेकेदार की
बत्तीसी ।


20.गीतकार
गा-गा कर
प्रशस्ति गान
शब्दों से
करके पैदा
रुझान
बन गए
तुक्बाज भी
गीतकार महान ।


21.संजीदगी
संजीदगी
अगर
अधिक खतरनाक
हो जाए
तो
आदमी कि चाहिये
बेबाक
हो जाये ।

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प्रकाशक के बारे में

मेरी फ़ोटो
4 मार्च 1956 को बिहार के कटिहार में जन्में शम्भु चौधरी का मानना है - साहित्य जगत में किसी का नाम स्वतः नहीं होता, उसे कुछ लिखना ही होगा, भले ही लेख, कहानी या कविता हो, शम्भु चौधरी ने कई लघुकथाऎं/कविता/सामाजिक लेख लिखें हैं। इनका जीवन सामाजिक कार्यों में ही गुजर गया, वर्तमान में आप कोलकाता से प्रकाशित 'समाज विकास' पत्रिका के कार्यकारी सम्पादक हैं और इस वेव पत्रिका 'नया समाज' के सम्पादक। आपकी एक पुस्तक "मारवाड़ी देस का न परदेस का" विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर लिखे इनके लेखों का संग्रह प्रकाशित। कई सामाजिक स्मारिका का सम्पादन भी किया है। 'धुन्ध और धुआं" इनके संपादन में प्रकाशित। आप बचपन से ही पत्रकारिता जगत से जुड़े हुऎ हैं। असम के ऊपर लिखे लेखों का संसद में गुंज। कई सामाजिक आन्दलनों -देवराला सती काण्ड, शत्रुघन सिन्हा विवाद और बीजु पटनायक विवाद जैसे मामले में कोलकाता शहर में आन्दोलन को नैतृत्व प्रदान करना। इनका संपर्क पता है; एफ.डी.-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता -700106 है। Mobile: 0-9831082737